मेरी दूसरी कविता

"इच्छा "

मेरी बस इतनी सी इच्छा,
जीवन संग बिताऊँ।
पर क्या यह छोटी सी इच्छा,
थी उसको मंजूर।


मैंने तुमसे मांगाजब भी ,
मांगा बस संग देदो।
 क्या तुम बस इतनी सी इच्छा,
कर पाए मेरी पूरी।


मैंने सोचा एक इच्छा तुम,
 करते सबकी पूरी।
पर मैंने न जाना यह कि,
कभी न होगी पूरी।।


कुसुम ठाकुर
टैगोर एकाडमी
१८/११/१९९७
शाम ४:३० बजे


1 comment:

श्यामल सुमन said...

इच्छा पूरी हो अगर रहे न मन में क्लेश.
इस अनंत की दौड़ में कुछ न कुछ तो शेष..
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com