संस्मरण(दूसरी कड़ी)

मैं जिस दिन पन्द्रह साल की हुई उसके ठीक दूसरे दिन मेरी शादी हो गयी। शादी का मतलब क्या होता है यह भी तो मैं नहीं जानती थी। मुझे तो यह यह भी पता नहीं था कि दीदी की शादी के तुंरत बाद मेरी भी शादी हो जायेगी। मैं तो मैट्रिक की परीक्षा देकर खुशी खुशी अपनी दोस्तों को यह कह कर गाँव गयी थी कि अपने चाचा की बेटी यानि अपनी बड़ी बहन बहन की शादी में जा रही हूँ खूब मस्ती करूंगी। मैं उससे पहले कभी शादी नहीं देखी थी। मैं अपने सारे भाई बहनों में सबसे बड़ी हूँ पर मुझे बचपन में बड़ी बहन का बहुत शौक था। जब भी मेरी सहेलियां अपनी बड़ी बहन की बातें करतीं तो मैं दुखी हो जाती जो मेरी बड़ी बहन नहीं हैं।

मेरे चाचा की शादी मेरी मौसी से हुई है। मैं उन्ही के पास रह कर राँची में पढ़ रही थी, कारण मेरे बाबुजी उस समय अरुणाचल में पदासीन थे और वहां केवल छोटे बच्चों के लिए ही स्कूल थी। हम छः भाई बहनों में से मैं और मेरा बड़ा भाई चाचा के पास राँची रह गए और बाकी तीन बहनें और सबसे छोटा भाई बाबुजी माँ के साथ अरुणाचल चले गए।

दीदी की शादी में मैं अपने चाचा मौसी के साथ गयी थी और माँ बाबुजी अरुणाचल से आए थे। मुझे इस बात की बहुत खुशी थी कि पहली बार किसी की शादी वह भी अपने घर में देखूंगी, साथ ही अपने माँ बाबुजी और सभी भाई बहनों से मिलूंगी यह सोचकर खुशी और दुगनी हो रही थी। शादी के तुंरत बाद बाबुजी और चाचा कहीं चले गए। कहाँ वह तो मुझे किसी ने बताया भी नहीं और मैं अपने भाई बहनों और सहेलियों में इतना व्यस्त थी कि जानने की इच्छा भी नही हुई। खूब आम खाती और खूब खेलती थी।

वैसे तो हम जब भी जाते तो दादी हमे बहुत मानतीं थीं पर इस बार मुझे कुछ ज्यादा ही मानतीं थी। एक दिन सुबह जब मेरी नींद खुली और अपने कमरे से बाहर आयी तो कुछ अजीब ही लगा। घर में सभी व्यस्त थे दादी सब को डांट कर कह रही थीं जल्दी जल्दी सब काम करो अब समय नहीं है। मुझे देखते ही बोल पड़ीं यह देखो अभी तक मेरी पोती फ्राक में ही घूम रही है। मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया। मैं धत बोल कर वहां से चली गयी। मुझे लगा शायद कल मेरा जन्मदिन है और दादी पहले से ही मुझे चिढाने के लिय कह रही थीं जन्मदिन के दिन इस बार साड़ी पहनना पड़ेगा इसलिए ऐसा कह रहीं हैं।

अचानक चाचा को बाबा के साथ आँगन में घुसते हुए देखी। चाचा की नज़र ज्यों ही मुझपर पड़ी तुंरत कह उठे अरे मिठाई खिलाओ तुम्हारी शादी ठीक करके आया हूँ। मैं तो बिल्कुल आवाक रह गयी। मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था क्या कहूँ ? कुछ कहना भी चाहिए या नहीं? यह खुशी की बात है या........? हाँ एक बात अवश्य दिमाग में आया और मैं दुखी हो गयी। मैं तो अपनी दोस्तों को कह कर आयी थी कि मैं अपनी बहन की शादी में जा रही हूँ। वह भी इतराते हुए कही थी क्यों कि अक्सर किसी न किसी सहेली को अपने भाई बहनों की शादी में जाना होता था और जब वे मुझे सुनातीं तो बहुत बुरा लगता था। मैं शादी के विषय में क्या सोचूंगी, सोचने लगी अपनी सहेलियों को क्या कहूँगी। वे तो मेरा मजाक बना देंगीं कि अपनी बहन की शादी का कह कर गयी और अपनी ही शादी कर आ गयी। मैं सारी रात यही सोचती रह गयी। माँ को भी मैं खुश नहीं देखी।

चाचा सिर्फ़ ख़बर करने आए थे शादी की तैयारी तो यहाँ दादी बाबा को ही करना था। चाचा दिन में खाने के बाद चले गए। दूसरे दिन सुबह बाबुजी आए और उनको चाय वगैरह देने के बाद माँ को पूछते सुनी लड़का क्या करता है। बाबुजी ने और क्या कहा वह तो नहीं सुनी पर यह सुनी कि लड़का इंजीनियरिंग में पढ़ता है। बाबुजी से बात करने के बाद से माँ भी खुश दिखीं।जन्मदिन के दिन दादी की ही बात रही और मुझे शाम में थोडी देर के लिए साड़ी पहनना पडा। जन्मदिन के दिन सुबह सुबह बाबुजी भी आ गए। बाबुजी जिस दिन आए उसके दूसरे दिन मेरी शादी खूब धूम धाम से हो गयी। मेरे पति उस समय इंजीनियरिंग में पढ़ते थे।

क्रमशः ........

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