माँ मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी,



माँ मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी,
अब जाऊँ किधर तज शरण तुम्हारी 


दर भी तुम्हारा लगे मुझको प्यारा,
 तजूँ मैं कैसे अब शरण तुम्हारी 
माँ .........................................


मन मेरा चंचल, धरूँ ध्यान कैसे,
बसो मेरे मन, मैं शरण तुम्हारी
माँ..........................................


जीवन की नैया मझधार में है, 
पार उतारो मैं शरण तुम्हारी
माँ .................................... 


तन में न शक्ति, करूँ मन से भक्ति 
अब दर्शन दे दो मैं शरण तुम्हारी 
माँ.............................................

- कुसुम ठाकुर - 

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर प्रस्तुति
नवरात्रि की शुभकामनायें-

शब्दों की मुस्कुराहट पर ....क्योंकि हम भी डरते है :)